भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. वर्ष 1967 के बाद रुपया इतना कमजोर कभी नहीं रहा, जैसा आज है. रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 66.76 पैसे आंकी गई है. क्या इसका कमजोर होना हमारी जेब के बोझ पर और असर डालेगा. या ये कुछ लोगों के लिए फायदेमंद भी होगा.
किस वजह से रुपया कमजोर हो रहा है यूं तो इसके संकेत कई वजहों से वर्ष 2018 की शुरुआत से ही मिलने लगे थे. करेंसी कई कारकों से दबाव में थी लेकिन हाल ही में कच्चे तेल के दामों में बढोतरी ने रुपये का हाल बेहाल कर दिया है. इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर निःसंदेह असर पड़ेगा. सामान महंगे होंगे. खासकर इलैक्ट्रॉनिक्स, दवाएं, मकान बनाना, आभूषण और विदेश में पढाई लिखाई या सैरसपाटा. क्रूड आयल के दामों में तेजी का प्रभाव क्या होगा भारत अपनी जरूरतों का 80 फीसदी तेल आयात करता है. लिहाजा तेल के दामों में बढोतरी का असर हमारे जीवन के हर पहलू पर पडे़गा. रोजमर्रा के इस्तेमाल की सारी वस्तुएं महंगी हो जाएंगी. न केवल व्यापार घाटा बढ़ेगा बल्कि विदेशों से सामान मंगाना और महंगा साबित होगा. वित्तीय वर्ष 2018 में व्यापार घाटा 108 बिलियन डॉलर से बढ़कर 157 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. यानि भारत के देनदारी बिल का दबाव भी बढ़ जाएगा. आयात चूंकि महंगा हो गया है कि लिहाजा भारत को कहीं ज्यादा डॉलर्स की जरूरत होगी.
हमारी जेब पर क्या असर पड़ेगा दो चीजें एक साथ हो रही हैं. एक तो रुपये का मूल्य गिर रहा है. दूसरा तेल के दामों में तेजी से बढोतरी हो रही है. इससे घरेलू चीजों और सब्जियों के दामों पर तो असर पड़ना ही है. ये महंगी होंगी तो बाहरी देशों से आने वाले सामानों के लिए ज्यादा दाम चुकाने होंगे. अगर यही हालत बनी रही तो आने वाले समय में हमारी जेबों पर जबरदस्त दबाव पड़ने वाला है.
डॉलर की कीमत बढ़ने पर महंगाई कितनी बढती है एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है
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