महाराष्ट्र के तीन जिलों में तेंदुओं का खौफ, जान बचाने को गले में नुकीली कीलों वाले पट्टे पहन रहे लोग
महाराष्ट्र के तीन जिलों में तेंदुओं का खौफ, जान बचाने को गले में नुकीली कीलों वाले पट्टे पहन रहे लोग
महाराष्ट्र में तेंदुओं ने गन्ने के खेतों को अपना घर बना लिया है, जिससे लोगों में डर का माहौल है। तेंदुए खेतों में छिपकर हमला कर रहे हैं, जिससे किसानों और मजदूरों की जान खतरे में है। प्रशासन तेंदुओं को पकड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है।

तेंदुओं ने महाराष्ट्र में गन्ने खेतों को बना लिया है अभयारण्य।
महाराष्ट्र के तीन जिलों पुणे, नासिक व अहिल्यानगर में गन्ने के खेतों को तेंदुओं ने अपना अभयारण्य बना लिया है। इन खेतों में रह रहे तेंदुओं की बड़ी संख्या स्थानीय ग्रामीणों के लिए भय और मुसीबत का कारण बन गई है। लोग तेंदुओं से बचने के लिए गले में नुकीली कीलों वाले पट्टे पहनकर घूमने को मजबूर हैं।
पुणे, नासिक और अहिल्यानगर गन्ने की खेती के लिए जाने जाते हैं। इन जिलों में हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती होती है, जो इन क्षेत्रों की समृद्धि का कारण भी हैं। लेकिन इन दिनों यही गन्ने के खेत ग्रामीणों के लिए भय और मुसीबत का कारण बन गए हैं, क्योंकि पिछले पांच वर्षों में इन क्षेत्रों में तेंदुओं के हमलों की 350 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 170 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इनमें 70 हमले तो अकेले पुणे में ही हुए हैं।
पिछले तीन माह में ही उपरोक्त तीन जिलों में 14 लोग तेंदुओं के हमलों में मारे जा चुके हैं। इन घटनाओं ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। इस कारण राज्य सरकार ने 11 करोड़ रुपये इस समस्या से निपटने के लिए खर्च करने का निर्णय किया है।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पुणे, नासिक और अहिल्यानगर में हजारों हेक्टेअर में फैले गन्ने के खेतों में तेंदुए तीन पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। अब वह जंगल को भूल चुके हैं। गन्ने के खेत एवं उनके आसपास से बहती नदियां और नहरें उनके पनपने के लिए बेहतरीन वातावरण उपलब्ध कराते हैं।
चूंकि, वे इन खेतों को ही अब अपना अभयारण्य समझने लगे हैं, इसलिए जब भी कोई इन खेतों की ओर जाता है या गन्नों की कटाई आरंभ होती है तो वे इसे अपने क्षेत्र में किया जा रहा अतिक्रमण मानकर किसानों पर हमला कर बैठते हैं। पूरे महाराष्ट्र में तेंदुओं की कुल संख्या 3800 बताई जाती है। खेतों में इनकी संख्या कितनी है, इसका कोई सही अनुमान अभी नहीं लगाया जा सका है।
लेकिन, इन आतंक को देखते हुए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाने का निर्णय किया है। तेंदुओं की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से इनके बंध्याकरण की विशेष अनुमति प्राप्त कर ली है। आदमखोर तेंदुओं को पकड़कर पुणे के जुन्नर तालुका में स्थित माणिक डोह रेस्क्यू सेंटर में रखने की शुरुआत की गई है। कुछ खतरनाक तेंदुओं को सीधे गोली मारने के आदेश भी दिए जा चुके हैं।
वन विभाग ने प्रभावित क्षेत्रों में 200 पिंजरे लगा दिए हैं तथा एक हजार पिंजरों की खरीद की जाने वाली है। चूंकि तेंदुआ ज्यादातर इंसान को गर्दन से ही पकड़कर ले जाता है, इसलिए सरकार की ओर से गले में बांधने के लिए ऐसी पट्टियां वितरित की जा रही हैं, जिन पर नुकीली कीलें लगी हैं। ज्यादातर लोग दिन में भी ये पट्टे बांधे दिखाई देते हैं। ताकि तेंदुआ उन कीलों से डरकर हमला न करे।
ग्रामीणों को लंबे डंडे में लगे त्रिशूल जैसे हथियार एवं झटका देनेवाली टार्च भी बांटी जा रही हैं। एआइ तकनीक से लैस सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जिन पर तेंदुए की तस्वीर आते ही जोर से सायरन बजने लगता है। जिससे लोग सचेत हो जाते हैं।
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