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सुप्रीम कोर्ट ने वापस लिया अपना ही आदेश, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के खिलाफ की थी सख्त टिप्पणी

 सुप्रीम कोर्ट ने वापस लिया अपना ही आदेश, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के खिलाफ की थी सख्त टिप्पणी


सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज प्रशांत कुमार पर की गई टिप्पणी हटाई जिसमें एक सिविल विवाद मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने की आलोचना थी। कोर्ट ने कहा कि उसका इरादा उन्हें शर्मिंदा करना नहीं था। चीफ जस्टिस बी आर गवई के अनुरोध के बाद कोर्ट ने यह फैसला लिया।


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 8 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज प्रशांत कुमार को लेकर की गई अपनी उस टिप्पणी को हटा लिया है जिसमें उनकी एक सिविल विवाद मामले में आपराधिक कार्यवाही को अनुमति दिए जाने की आलोचना की थी। कोर्ट ने कहा कि उसका इरादा उन्हें शर्मिंदा करना या उन पर आरोप लगाना नहीं था।

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने दोहराया कि ये टिप्पणियां न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के लिए की गई थीं।



SC ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के खिलाफ टिप्पणी हटाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस बी आर गवई द्वारा मामले पर पुनर्विचार करने के अनुरोध के बाद वह इन टिप्पणियों को हटा रही है। शीर्ष अदालत ने यह स्वीकार करते हुए कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ही रोस्टर के मास्टर हैं, इस मामले में निर्णय लेने का अधिकार उन पर छोड़ दिया।


अपने अभूतपूर्व आदेश में, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की पीठ ने 4 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के आपराधिक मामलों के रोस्टर को 'उनके पद छोड़ने तक' हटा दिया, क्योंकि उन्होंने एक दीवानी विवाद में आपराधिक प्रकृति के समन को 'गलती से' बरकरार रखा था।

हाईकोर्ट के जजों ने पत्र लिखकर जताया था विरोध

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के एक ग्रुप ने मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर उनसे न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को आपराधिक रोस्टर से हटाने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के जवाब में एक कोर्ट मीटिंग बुलाने का अनुरोध किया था।


न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा ने पत्र लिखकर 4 अगस्त को पारित सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर अपनी पीड़ा व्यक्त की और इस पत्र पर 7 न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक तर्कों पर की थीं टिप्पणियां

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार के न्यायिक तर्कों पर कड़ी टिप्पणियां कीं और हाईकोर्ट प्रशासन को उन्हें आपराधिक मामलों की सूची से हटाने का निर्देश दिया। साथ ही, उन्हें सेवानिवृत्ति तक किसी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ एक खंडपीठ में नियुक्त करने का भी निर्देश दिया था।

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