'जैसी करनी, वैसी भरनी', जिन्हें बंदूक थमाया, उन्हीं के हाथों मारा गया माओवादियों का प्रमुख
'जैसी करनी, वैसी भरनी', जिन्हें बंदूक थमाया, उन्हीं के हाथों मारा गया माओवादियों का प्रमुख
चार दशकों तक सैकड़ों आदिवासियों को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण देकर खूंखार लड़ाके तैयार करने वाले बसव राजू को उन्हीं की सिखाई तकनीक का उपयोग कर डिस्टि्रक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के जवानों ने अबूझमाड़ और इंद्रावती टाइगर रिजर्व के जंगल में बुधवार को हुई मुठभेड़ में ढेर कर दिया। इस मुठभेड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए।

'जैसी करनी, वैसी भरनी' की कहावत बीटेक इंजीनियर से देश के सबसे बड़े माओवादी बने बसव राजू उर्फ अंबाला केशव राव उर्फ गगन्ना के लिए सही साबित हुई।
इनामी बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए
चार दशकों तक सैकड़ों आदिवासियों को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण देकर खूंखार लड़ाके तैयार करने वाले बसव राजू को उन्हीं की सिखाई तकनीक का उपयोग कर डिस्टि्रक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के जवानों ने अबूझमाड़ और इंद्रावती टाइगर रिजर्व के जंगल में बुधवार को हुई मुठभेड़ में ढेर कर दिया। इस मुठभेड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मार्च, 2026 तक माओवाद के सफाए के संकल्प जाहिर कर चुके हैं। यही कारण है कि पिछले 15 महीनों में बेहद आक्रामकता से माओवादियों पर प्रहार किया गया है। 200 से अधिक मुठभेड़ में 440 माओवादियों को मार गिराया गया है।
आत्मसमर्पित माओवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे
पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इस सफलता में सबसे बड़ा योगदान डीआरजी जवानों का है। अबूझमाड़ मुठभेड़ उन आत्मसमर्पित माओवादियों के लिए बड़ी सफलता है, जो अब डीआरजी का हिस्सा बनकर लाल आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
जंगल की गहन जानकारी और माओवादी रणनीति की समझ के कारण ये जवान अभियानों का नेतृत्व कर रहे हैं। वर्तमान में बस्तर में तीन हजार से अधिक डीआरजी जवान सक्रिय हैं।बसव राजू को माओवादी संगठन के लिए आइईडी और गुरिल्ला युद्ध तकनीकों का जनक माना जाता है।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) वारंगल से बीटेक करने के बाद उसने अपनी पढ़ाई का दुरुपयोग हथियार बनाने और सशस्त्र माओवादियों को तैयार करने में किया। 1987 में उसने मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी और अन्य के साथ मिलकर लिट्टे के पूर्व लड़ाकों से घात लगाकर हमला करने की रणनीति और जिलेटिन का उपयोग सीखा।
2004 में भाकपा (माओवादी) का गठन हुआ
2004 में जब भाकपा (माओवादी) का गठन हुआ, तो उसे पार्टी के केंद्रीय सैन्य आयोग का प्रमुख और पोलित ब्यूरो सदस्य बनाया गया। उसने लिट्टे से सीखी तकनीकों को तेजी से लागू करते हुए माओवादी आंदोलन को एक हिंसक आंदोलन में बदल दिया।
बस्तर के अबूझमाड़, गंगालूर और छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर उसने आइईडी, बंदूकें और बैरल ग्रेनेड लांचर (बीजीएल) जैसे हथियार बनाने के कई कारखाने स्थापित किए।
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेट गांव में 1955 में जन्मा बसव राजू वामपंथी छात्र राजनीति में सक्रिय था और 1970 के दशक से ही माओवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ था। 10 नवंबर 2018 को गणपति के इस्तीफे के बाद राजू सीपीआइ (माओवादी) का महासचिव बना।
झीरम हमले का जिम्मेदार था दुर्दांत राजूबसव
झीरम हमले का जिम्मेदार था दुर्दांत राजूबसव राजू तत्कालीन छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित 30 से अधिक नेताओं और सुरक्षाकर्मियों की मौत का जिम्मेदार था।
1300 से अधिक सुरक्षा बल के जवान बलिदान
प्रदेश में 2004 के बाद हुए सभी बड़े हमले के पीछे वही था। उसके इशारे पर ही 25 मई, 2013 को झीरम घाटी हमला हुआ था। उसने माओवादी संगठन में आइईडी का उपयोग कर विस्फोट करने और गुरिल्ला युद्ध तकनीक लागू की।
उसके द्वारा कराए गए हमलों में 5,000 से अधिक लोग मारे गए। माओवादी हिंसा में 1800 से अधिक निर्दोष ग्रामीण मारे गए और 1300 से अधिक सुरक्षा बल के जवान बलिदान हुए।
इनामी बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए
चार दशकों तक सैकड़ों आदिवासियों को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण देकर खूंखार लड़ाके तैयार करने वाले बसव राजू को उन्हीं की सिखाई तकनीक का उपयोग कर डिस्टि्रक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के जवानों ने अबूझमाड़ और इंद्रावती टाइगर रिजर्व के जंगल में बुधवार को हुई मुठभेड़ में ढेर कर दिया। इस मुठभेड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मार्च, 2026 तक माओवाद के सफाए के संकल्प जाहिर कर चुके हैं। यही कारण है कि पिछले 15 महीनों में बेहद आक्रामकता से माओवादियों पर प्रहार किया गया है। 200 से अधिक मुठभेड़ में 440 माओवादियों को मार गिराया गया है।
आत्मसमर्पित माओवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे
पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इस सफलता में सबसे बड़ा योगदान डीआरजी जवानों का है। अबूझमाड़ मुठभेड़ उन आत्मसमर्पित माओवादियों के लिए बड़ी सफलता है, जो अब डीआरजी का हिस्सा बनकर लाल आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
जंगल की गहन जानकारी और माओवादी रणनीति की समझ के कारण ये जवान अभियानों का नेतृत्व कर रहे हैं। वर्तमान में बस्तर में तीन हजार से अधिक डीआरजी जवान सक्रिय हैं।बसव राजू को माओवादी संगठन के लिए आइईडी और गुरिल्ला युद्ध तकनीकों का जनक माना जाता है।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) वारंगल से बीटेक करने के बाद उसने अपनी पढ़ाई का दुरुपयोग हथियार बनाने और सशस्त्र माओवादियों को तैयार करने में किया। 1987 में उसने मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी और अन्य के साथ मिलकर लिट्टे के पूर्व लड़ाकों से घात लगाकर हमला करने की रणनीति और जिलेटिन का उपयोग सीखा।
2004 में भाकपा (माओवादी) का गठन हुआ
2004 में जब भाकपा (माओवादी) का गठन हुआ, तो उसे पार्टी के केंद्रीय सैन्य आयोग का प्रमुख और पोलित ब्यूरो सदस्य बनाया गया। उसने लिट्टे से सीखी तकनीकों को तेजी से लागू करते हुए माओवादी आंदोलन को एक हिंसक आंदोलन में बदल दिया।
बस्तर के अबूझमाड़, गंगालूर और छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर उसने आइईडी, बंदूकें और बैरल ग्रेनेड लांचर (बीजीएल) जैसे हथियार बनाने के कई कारखाने स्थापित किए।
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेट गांव में 1955 में जन्मा बसव राजू वामपंथी छात्र राजनीति में सक्रिय था और 1970 के दशक से ही माओवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ था। 10 नवंबर 2018 को गणपति के इस्तीफे के बाद राजू सीपीआइ (माओवादी) का महासचिव बना।
झीरम हमले का जिम्मेदार था दुर्दांत राजूबसव
झीरम हमले का जिम्मेदार था दुर्दांत राजूबसव राजू तत्कालीन छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित 30 से अधिक नेताओं और सुरक्षाकर्मियों की मौत का जिम्मेदार था।
1300 से अधिक सुरक्षा बल के जवान बलिदान
प्रदेश में 2004 के बाद हुए सभी बड़े हमले के पीछे वही था। उसके इशारे पर ही 25 मई, 2013 को झीरम घाटी हमला हुआ था। उसने माओवादी संगठन में आइईडी का उपयोग कर विस्फोट करने और गुरिल्ला युद्ध तकनीक लागू की।
उसके द्वारा कराए गए हमलों में 5,000 से अधिक लोग मारे गए। माओवादी हिंसा में 1800 से अधिक निर्दोष ग्रामीण मारे गए और 1300 से अधिक सुरक्षा बल के जवान बलिदान हुए।
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