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उर्दू को अल्पसंख्य मंत्रालयक के अधीन किए जाने का विरोध

उर्दू के जानेमाने प्रोफेसर गोपी चंद नारंग कड़ी आपत्ति जताते हुए कहते हैं, "सैकड़ों उर्दू लेखक हिंदू हैं. उर्दू हिंदी और फारसी भाषा का मिश्रण है. उर्दू भाषा को संरक्षित करने का काम मुगलों ने किया है. उर्दू और हिंदी के स्वर समान हैं. वास्तव में 70 फीसद उर्दू हिंदी है. अगर सरकार NCPUL के ट्रांसफर पर आगे बढ़ती है तो इससे समझा जाएगा कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की भाषा है." नारंग कहते हैं कि उर्दू की जड़ भारत में है. संविधान में इसे 22 भाषाओं में मान्यता दी गई है. पूर्व में हिंदुस्तानी कही जानेवाली भाषा के बारे में महात्मा गांधी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना चाहते थे. उर्दू में लिखने वाले अतहर फारूकी का भी मानना है कि उर्दू के राष्ट्रीय कैरेक्टर को देखते हुए इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह मानव संसाधन विकास मंत्रालय है. जम्मू-कश्मीर के प्रोफेसर और उर्दू के विद्वान सुखचैन सिंह सरकार की पहल के पीछे कोई तर्क नहीं समझते. प्रोफेसर सुखचैन कहते हैं, "उर्दू सिर्फ मुसलमानों की भाषा नहीं है. अगर यहां मीर हसन हैं तो दयाशंकर कौल नसीम भी हैं.

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